उस रात,
जब मैं तुम्हे देना चाहता था
तुम्हारे हिस्से कि रोटी
तुम्हारे हिस्से के पैरहन
तुम्हारे हिस्से का मकान ........
तुमने मुझे मार्क्सवादी कहा था
रोटी और बन्दूक की फिलासोफी से अपने पल्ले झाडे थे
और फकत अपने हिस्से का प्यार मांगा था
नासमझ वक्त का बेलगाम दरिया बह गया
तुम चली गयी तो समझौते आ गए
आज की रात
जब मैं तुम्हे नहीं दे सकता
तुम्हारे हिस्से की रोटी
तुम्हारे हिस्से का पैरहन
तुम्हारे हिस्से का मकान
और ना ही तुम्हारे हिस्से का प्यार
तुमने मुझे बुद्धिजीवी कहा है