Wednesday, February 9, 2011

MOHEN- JO -DARO


अभी तो चमका था तुम्हारी अंगुश्तरी का नीलम

अभी तो लेटी थी तुम मेरे शानों पर


मै तो लिख ही रहा हूं तुम्हारा नाम शीशम पर

अभी तो भूले थे तुम अपने कान के बुदें

अभी तो ताज को जेरे बहस बताया था


अभी तो पराठे कि जिद की थी मैंने


और दिखाई थी तुमने आँखें


अभी तो रो रही थी तुम गिलहरी के मरने पर


और हंस रहा था मै ELLE-18 की ज़िद पर


अभी तो अपनी सहेली से बचा लाई थी मुझे


क्युंकि उसे आता था काला जादू


अभी तो मेरे घुटनो पे सर रख कहा था


"जब तक नही आओगे मै रोउंगी नही"


अब जो आया हूं तो


तारीख मुझपे हंसती है


ग्यारह सालों के ताने कसती है


क्या सच मे ग्यारह साल बीत गये! सच बताना।


हां एक सच और बताना


कोई कह रहा था


" वो रुखसती पर भी नही रोई थी"।



अंगुशतरी- अंगुठी


शानों- shoulder


जेरे बहस- बह्स का मुद्दा


रुखसती- विदाई


Monday, February 7, 2011

उम्मीदें, उम्मीद से हैं




उधडे यादों को फिर एक बार रफू करना है


जो रह गया था वही, फिर से शुरु करना है।



ख्वाब बुनने की आदत है सो जाती ही नहीं


सोचते रहते हैं यूं करना हैं, यूं करना है



बूढे बरगद से तेरा नाम मिटा आये है


बेवजह ही तुझे बदनाम भी क्यूं करना है।



ज़ेहन को फिक्र 'तू मेरी बुरी आदत है '


मैने ठाना कि इस आदत ओ जूनूं करना है



दिल को लगता है तू आएगा पशेमां एक दिन


दिल का क्या है इसे हर हाल सुकूं करना है ।



ज़ेहन- दिमाग


पशेमां- पछतावा

(चित्र गूगल से साभार)